पाकिस्तानी जनमानस की करूण पुकार
त्राही-त्राही करती मानवता ,
दशकों से संकुचित दर्द को खोली है ,
आतंकिस्तान की जनमानस सहमी मौन-स्वर में बोली है ।
घाटी में आतंक भयावाह , कैसा क्रूरता का प्रतिरूप खड़ा ,
पशुता को करता साकार , हीन सभ्यता का रूप अडा़ ।
बर्बर है यह समाज विश्व में , धरती का कालिख कलंक ,
जहां जिहादी नग्न-नाच , होता सदैव इसके अंक ।
पेशावर – कराची सब आतंकित ,
दग्ध झुलस उठा लाहौर ,
ब्लूचिस्तान से लपटें निकले , जलाती गुलाम कश्मीर ( POK ) की पावन छोर ।
अन्दर-अन्दर से सहमे , डूब रहे करके क्रंदन ,
मानवता विकृत हो चुकी कब की , क्रूर प्रहार दासता की बंधन ।
शासक यहां का लंपट , कायर , आतंकों का करता व्यापार
जनमानस को करता प्रताड़ित , बलात् करता व्याभिचार !
मदरसों में शिक्षा कहां , बलात् होता बलात्कार ,
हाय ! लज्जा की बात बहुत , बहुत मची है चीख-चीत्कार ।
सेना के आतंकों से , हर ओर मची है करूण-पुकार ,
हर सांझ-सबेरा होता यहां , बारूदों गोलों की बौछार ।
नहीं पहनने को चीर-वसन , हैं बहु खाने को लाले ,
धरती बंजर जिहादी खेती से , अब कैसे निज जीवन संभालें !
यहां बसती है हवाओं में दग्ध आतंक लहर की ,
सच पूछो तो हम सहमे – असहाय ,
कैसे करूं वर्णित जिहादी कहर की ;
अब आस नहीं दुनिया से , केवल एक निमिष प्रलय-पहर की ,
मुक्ति चाहती बेबस- कुंठित आवाम , पाकिस्तानी हर गांव-शहर की ।
झूलस रही बाल कणिकाएं , झुलस रहा हर मृदु यौवन ,
झुलस रहा हर प्रणय आस , कंपित कुंठित हर जीवन ।
विघटित भारत की यह पुण्यभूमि , कितने आहों को झेली है ,
हर प्रहर , आतंकी क्रुर कहर से , सिंधु घाटी भी डोली है ।
लूट रही सतत् सौम्य प्रकृति , लूट चुका हिन्द-तप विहार ,
लूट चुका उन्नत निति-नियामक , लूट चुका विशुद्ध-संस्कार ।
धरती पर कर रही तांडव , आतंक की विविध प्रकार ,
बहु डूब चुका जन-जन जीवन , हे भारत के कर्णधार !
बहुत अशिक्षा में जकड़े हम, दूर तक दिखता कोई मर्ज नहीं ,
हे भारत के वीर सपूत , क्या तेरा कोई फर्ज नहीं !
अंदर से उठता असह्यनीय वेदना , जग उठो हे भारत वीर ,
विश्व शांति मानवता हित , ले कराल प्रलयंकर रूप गंभीर !
निज अस्त्रों का संधान कर , आतंक मुक्त कर दे इस माटी को ,
जय भारती के स्वर से सस्वर संवहित कर दे घाटी को ।
बालाकोट को नष्ट किये , अबकी बार बहावलपुर , लाहौर ;
और आगे सतत् विध्वंस करते जाना , जहां-जहां पनपे आतंक का ठौर !
✍️ कवि आलोक पाण्डेय
वाराणसी,भारतभूमि