पांच इंद्रियों से प्रेम
बहस पंच ज्ञानेंद्रियों की
छिड़ गयी पांच कर्मेन्द्रियों से
किससे कौन श्रेष्ठ ठहरा
लग गयी शर्त तब दोनों में।
एक उपासक विद्या का
दूजे से धन संपदा बरसती,
फिर भी बिना तालमेल के
काम किसी का नही है चलती।
यह सत्य जानते थे दोनों
पर अहंकार उन पर था भारी,
पहुँच गये नारद के पास
मति गयी थी उनकी मारी।
दूर खड़ा आज का मानव
था देख रहा उनका यह खेल,
सभी दसों इंद्रियों से वह
करता था वह बहुत प्रेम।
नारद का स्वभाव जानता
मानव हो उठा ससंकित,
उल्टा सीधा कहि बता न दे
सोच हो उठा वह भयभीत।
डर जिसका था वही हुआ
नारद ने कुछ ऐसा समझाया
इसीलिए निर्मेष खेल दिल का
नहीं दिमाक के समझ मे आया।
निर्मेष