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23 Aug 2024 · 1 min read

पाँव की पायल

कोई काजल बना न पाता है, अब मुझे पागल
दिल को झनका न पाती है, किसी पाँव की पायल

किनारे छोड़ कर मैंने
ज़िंदगी लहरों को सौंप दी
दर्द का रीता नमक ले
गम के सागर को सौंप दी

कोई सूखा सा घाव कर न पाता, अब मुझे घायल
दिल को झनका न पाती है, किसी पाँव की पायल

दिन के छिपने के बाद
रात होने से पहले
मन में रमने के बाद
दूर होने से पहले

सितारे भी लुभा न पाते मुझको, फैलाकर आँचल
दिल को झनका न पाती है, किसी पाँव की पायल

अब न उगते सूरज से मैं
ताप–सम्मान लेता हूँ
प्रीत की चाँदनी में न
झुलसकर जान देता हूँ

सुधा–विष घुल न पाती मन में, न बजती कोई मादल
दिल को झनका न पाती है, किसी पाँव की पायल

यहां उठते हैं घूँघट जो
नज़ारों की घटाओं से
पंख लग जाते चंचल से
हया की इन अदाओं पर

कोई शोखी–शरारत भी, मुझे न कर पाती कायल
दिन को झनका न पाती है, किसी पाँव की पायल

–कुंवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह✍🏻
★स्वरचित
★©️®️सर्वाधिकार सुरक्षित

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