पाँच मुक्तक
पाँच मुक्तक
1-
डरे बच्चे व बूढ़े और दहशत हम जवानों में
असंभव है कि सो पाएं दरकते इन मकानों में
धरा ने यूँ है झकझोरा कलेजा मुँह को आ जाये
कि अब तो मौत ही दिखती यहाँ हर पल ठिकानों में
2-
दानवों ने दाव कैसे दे दिए
पेट पर भी पाँव जैसे दे दिए
जिन्दगी का कुछ भरोसा है नहीं
घाव पर भी घाव ऐसे दे दिए
3-
है भरोसा जिन्दगी में अब कहाँ
मिल सकेंगी सांस तन को रब कहाँ
जब खुशी पर हर कदम पहरा लगा
ख्वाहिशों के फूल खिलते कब कहाँ
4-
है नजर दुनिया की मेरी चाल पर
हँस रहे हो तुम भी मेरे हाल पर
है खुशी तुझको तो मेरे पास आ
खींच ले दो-चार चावुक खाल पर
5-
दिवाली भी मनाना अब नहीं आसान है यारों
नहीं अब एक भी सस्ता मिले सामान है यारों
कि रोजी भी हमारी छीन कर है ले गया कोई
मुबारक हो उसे जो भी यहाँ धनवान है यारों
– आकाश महेशपुरी