प़समंज़र
हमसफ़र तो बहुत मिले हया़ते सफ़र मे पर हमनव़ा न मिला।
यार तो बहुत मिले पर उनमे कोई राज़दार न मिला।
पैग़म्बर तो बहुत आये मगर उनमे कोई मसीहा न निकला।
नसीहत देने वाले तो बहुत मिले पर अमल करने वाले कम निकले।
ज़र ज़मा करने वाले बहुत देखे पर ज़कात करने वाले कम निकले।
ए़हसान लेने वाले बहुत मिले पर ए़हसानमंद कम निकले।
ज़ख्मों को क़ुरेदने वाले बहुत मिले पर म़रहम लगाने वाले कम निकले।
झूठों की ग़वाही देने वाले बहुत मिले पर सच का साथ देने वाले कम निकले।
ज़ाहिरे उल्फ़त बहुत मिली पर उनमे प़ाक म़ोहब्बत ना निकली।
सितमग़र तो बहुत देखे पर म़ददगार चन्द ही हुए।
ज़ंगबाज़ तो बहुत हुए मग़र उनमे ज़ाँबाज़ चन्द ही निकले।
राह में रोड़े अटकाकर गिराने वाले बहुत मिले पर लड़खड़ाकर गिरने पर हाथ थामने वाले चन्द ही थे।
खुश़ियों मे शामिल तो बहुत हुए पर उनमे ग़म बाँटने वाले कम निकले।
दीन दुनिया की दुहाई देने वाले बहुत थे पर उनमे भलाई करने वाले कम निकले।