पहाड़ टुटगे
पहाड़ टुटगे
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बनिहार मन घुट घुट के जियत हे,
रईस मन ह कूलर ऐ.सी.म सुतत हे।
गरीब ह कमाही तभे खाय बर पाही,
नई तो ओकर लईका मन उपास हो जाही।
कोरोना के कहर ल गरीब ह झेलथे,
अमीर मन ह बड़े बड़े गोठ पेलथे।
सौक निये कोई ल बुले के साहब,
कइसे जीही कइसे खाही बता देवा आप।
दुवारी ले नी निकले के फइसला बहुत बड़िहा हे,
का करही गरीब बिचारा मन भी भारी अड़िहा हे।
इकरो गुहार ल थोकुन सुन लेवव,
दु जुवार के खाना पीना ल दे देवव।
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डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभावना (छत्तीसगढ़)
मो. 8120587822