पहाड़ी आपदा
पिघला जो ग्लेशियर, मुसीबत आई सर, हुआ सब जलमय , गलती हमारी है।
नदिया कुपित हुई,तोड़ सारे बाँध बही ,लिये गांव साथ- साथ,नुकसान भारी है।
फँसे हुये मजदूर, कितने हैं मजबूर, आँखों में मगर आस, हिम्मत न हारी है।
ऐ मानव सम्भल जा, जुल्म इतने भी न ढा, रूठी तेरे कर्मों से ही ,कायनात सारी है ।
12-02-2021
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद