पहाड़ पर कविता
पहाड़ के लोग
पहाड़ आएंगे ज़रूर
जब बिक चुकी होगी जमीं सब
पुरखो का बनाया/बसाया हुआ
बेच दिए होंगे
सभी गाड़-धार; मात्र चंद पैसों के खातिर..
पहाड़ के लोग शहरों के
सौ गज की दौड़ में मशगूल हैं
हापाधापी करते हुवे..
अपनो से ही कंपीटीशन करते हुवे
ज़िन्दगी भर की
प्राइवेट नौकरी से
कमाया हुआ सारा का सारा धन लगा कर
पढ़ाई-लिखाई और स्वास्थ्य
ये व्यवस्था मात्रभर कसूर है पहाड़ का
और कुछ नहीं।
✒️Brij Rawat