पहाड़ की होली
शहरों की तरह नहीं होती
मेरे पहाड़ की होली
मैदानी गावों की तरह भी नहीं होती
मेरे पहाड़ की होली
मेरे पहाड़ में तो होती है
प्रकृति की होली
केवल लोग ही नहीं खेलते
बसंत भी खेलता है
मेरे पहाड़ में होली
रंग दिया खुमानी को
गुलाबी फूलों से उसने
रंगा है केंथ की हर डाली को
सफेद फूलों से उसने
लाल पीले हरे और नीले
हर रंग से सजे है पेड़ यहां
सुगंध से महक रहा है
मेरे पहाड़ का हर कौना आज
प्रकृति ने क्या खूब
मनाया है होली का त्यौहार
हर कोई सराबोर है
प्रकृति के इन रंगों से
है दृश्य विहंगम ये
मेरे पहाड़ की होली का
लगाया है ये गुलाल किसने
हर कोई हैरान है देखकर
खुद आए है कृष्ण या
भेजा किसी और को
उन्होंने होली खेलने को
मेरे पहाड़ की सुंदरता देखकर
देखोगे अगर तुम
तुम भी हो जाओगे मंत्रमुग्ध
मेरे पहाड़ की होली देखकर।।