पहाड़ी गाँधी, बुलबुले पहाड़, बाबा कांशीराम जयंती पर
11–07–2022
*’पहाड़ी गांधी’, ‘बुलबुले पहाड़’
बाबा काँशी राम
140 वीं जयन्ती पर सभी हिमाचल वासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏💐
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यज्ञ होम में प्राण की, ,निज आहुति बलि धीर।
आजादी जन चेतना , देव धरा के वीर।
हिम आँचल की शान है, बाबा काँशीराम।
जान समर्पण ही सदा , दिया लोक सुख धाम।।
हिमाचल प्रदेश की भूमि वीरों की भूमि है, महान स्वतंत्रता सेनानियों की भूमि है ,जिन्होंने अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई में अपनी अमुल्य जाने न्योछावर कर दी हैं। उन सभी सेनानियों को हम हिमाचल वासी बार-बार नमन और वंदन करते हैं ।उन्हीं सेनानियों में से एक हैं – पहाड़ी गांधी बाबा काँशी राम आज उनकी 140 वीं जयंती है।
गुलामी की जंजीरों से जकड़े भारतवर्ष को देखकर इस महान विभूति के हृदय में गहरी टीस उठी जिसे दूर करने के लिए अटूट राष्ट्र प्रेम भावना जागृत हुई उन्होंने अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया।
इनका जन्म 11 जुलाई सन 1882 को कांगड़ा जिला की पंचायत गुरनबाड (पदियाल) डाडासिबा में हुआ था ।इनके पिता का नाम लखनू राम और माता का नाम श्रीमती रेवती देवी ।मात्र सात वर्ष की आयु में इनकी शादी हो गई थी, इनकी पत्नी का नाम सरस्वती था जिन की आयु भी उस समय मात्र पाँच वर्ष थी। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा डाडासिबा में ही हुई। इनका बचपन काफी चुनौतीपूर्ण रहा क्योंकि जब ये केवल ग्यारह वर्ष की आयु में थे तो इनके पिता का देहांत हो गया। काँशीराम जी के कन्धों पर परिवार की सारी जिम्मेवारी आ गई। परिवार के भरण पोषण के लिए काम धन्धा जरूरी था इसीलिए काम की तलाश में वह लाहौर चले गए।
उस समय भारत में अंग्रेजों के शासन के विरुद्ध स्वतन्त्रता आंदोलन तेज हो रहा था वहाँ बाबा कांशी राम जी की भेंट कुछ स्वतन्त्रता सेनानियों (लाला हरदयाल सिंह, सरदार भगतसिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह और मौलवी बरकत) से हुई,बाबा काँशीराम जी भी अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल हो गए।
स्वतन्त्रता प्राप्ति का नारा उन्होने अपने हृदय में उतार लिया था, यही नारा शेर की दहाड़ जैसा परिचय कराता रहा। इस लक्ष्य पथ पर बढ़ते हुए उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा।
काँशीराम जी की जेल यात्रा और साहित्य लेखन साथ साथ चला—–
सन 1919 में जब जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ ,काशीराम उस वक्त अमृतसर में थे ,वहाँ वह वीभत्स दृश्य देख कर उनका हृदय छलनी छलनी हो गया। यहां ब्रिटिश राज के विरूद्ध अपनी आवाज बुलंद करने की कसम खाने वाले कांशी राम जी को 5 मई 1920 को लाला लाजपत राय के साथ 2 साल के लिए धर्मशाला जेल में डाल दिया गया।
बाबा काँशी राम अपने जीवन काल में कुल 11बार जेल गए और जीवन के नौ वर्ष ये अंग्रेज़ी सरकार की जेलों की सलाखों के पीछे रहे। सन 1919 में राॅल्ट एक्ट के विरोध में बाबा काँशीराम ने महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए सत्यग्रह में भाग लिया जिस कारण उन्हें गुरदासपुर जेल भेज दिया गया, यह उनकी पहली गिरफ्तारी थी। इसी दौरान इन्होने लिखना भी जारी रखा। पहाड़ी कविताऐं लिखी, कहानियाँ और उपन्यास भी लिखा। इनकी कुल कविताऐं =508,कहानियाँ-8, उपन्यास =1,है। सन 1920 में इनकी पहली रचना “निक्के निक्के माणुंआ जो”और “जीणे दी तैयारिया च”दोनों ही रचनाऐं जेल में लिखी है।
बाबा काँशी राम जी की कविताओं में देश प्रेम से भरपूर अद्भुत ओजस्वी स्वर पाया गया है इसके अलावा मानवता और सामाजिकता से परिपूर्ण भाव मिलते हैं।
बाबा काँशी राम जी की कविताऐं और गीत व्यक्ति के हृदय में अमिट छाप छोड़ जाते हैं। —-जिला ऊना के दौलतपुर में एक जनसभा में सरोजनी नायडू भी पधारी हुई थी, वहाँ पर काँशी राम जी के गीत और कविताऐं सुन कर वह विशेष प्रभावित हुई, उस समय उन्होने इन्हे बुलबुले पहाड़ कहकर बुलाया था।
कुशल सामाजिक कार्यकर्ता और बेसहारों के मसीहा —बेसहारा, विवश, कमजोर लोगों की सहायता करना बाबा काँशी राम जीवन में सबसे बड़ा मानव धर्म मानते थे इसलिए समय समय पर यथासंभव सहयोग में अग्रणी रहते थे। वर्ष 1905 में कांगड़ा घाटी में भूकंप से भारी तबाही हुई थी ।इस जलजले में करीब 20,000 लोगों की जान चली गई थी और 50,000से अधिक मवेशी मारे गए थे ।उस वक्त लाला लाजपत राय सहित कांग्रेस कार्यकर्ताओं की एक टीम लाहौर से कांगड़ा पहुंची थी ,जिसमें बाबा काँशीराम भी शामिल थे ।बाबा काशीराम जी ने गांव-गांव जाकर भूकंप से प्रभावित लोगों की सहायता की ।उनकी लाला लाजपत राय जी से इनकी नजदीकियां बढ़ी और आजादी की लड़ाई में ज्यादा सक्रिय हो गए ।
सन 1911 में बाबा काँशीराम जी दिल्ली दरबार के आयोजन को देखने पहुंचे जहां किंग जॉर्ज पंचम को भारत का राजा घोषित किया गया था ।इसके बाद काँशीराम जी ने ब्रिटिश राज के खिलाफ अपनी लेखनी को और भी धारदार बनाया ।
देश के लिए अनूठा समर्पण भाव—– बाबा कांशीराम जी का स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ाव इतना गहरा हो चुका था कि वे खुद को पूरी तरह से देश के लिए समर्पित कर चुके थे ।जब भगत सिंह ,सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा की खबर बाबा काशीराम तक पहुंची तो उन्होंने प्रण कर लिया कि वे ब्रिटिश राज के खिलाफ अपनी लड़ाई को और भी गति देंगे साथ ही यह भी कसम खाई कि जब तक देश आजाद नहीं हो जाता तब तक वह काले कपड़े की पहनेंगे इसके लिए उन्हें काले कपड़ों वाला जनरल भी कहा गया ।
उन्होंने अपनी यह कसम मरते दम तक नहीं तोड़ी ।
15 अक्टूबर 1943 को अपनी आखिरी सांसें लेते हुए भी उनके बदन पर काले कपड़े ही थे और कफन भी काले कपड़े का ही था।
पहाड़ी गाँधी की उपाधि—-
वर्ष 1937 में जवाहर लाल नेहरू होशियारपुर के गद्दी वाला में एक सभा को संबोधित करने के लिए आए हुए थे ।वहां मंच से नेहरू जी ने बाबा कांशीराम जी को पहाड़ी गांधी कहकर संबोधित किया था उसके बाद से काशीराम जी को पहाड़ी गांधी के नाम से ही जाना गया।
डाक टिकट का विमोचन—
बाबा कांशीराम अमर स्वतंत्रता सेनानी कहलाए। उनके सम्मान में 23 अप्रैल 1984 को ज्वालामुखी में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बाबा काँशीराम पर डाक टिकट का विमोचन किया था इसके अलावा उनकी यादों को सहेजने के लिए कई घोषणाएं भी की गई थी।
–साहित्य लेखन के साथ-साथ बाबा कांशी राम जी संगीत के क्षेत्र में भी दिलचस्पी रखते थे ,लाहौर में उनकी मुलाकात एक मशहूर देश भक्ति गीत पगड़ी संभाल जट्टा लिखने वाले सूफी अंबा प्रसाद और लालचंद फलक से हुई जिसके बाद कांशीराम पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित हो गए थे और देशभक्ति से परिपूर्ण अनेकों गीत लिखे थे।
–आज बाबा काँशीराम जी की 140वीं जयन्ती है , देश को स्वतन्त्र हुए 75 वर्ष हो गए हैं। आजादी के महासंग्राम में उनका बलिदान कभी नहीं भुलाया जा सकता ।आजादी के अमृत महोत्सव पर संपूर्ण हिमाचल वासियों के साथ साथ पूरे भारतवर्ष को उन पर गर्व है हम सभी उन्हें शत शत नमन करते हैं🙏🙏💐💐
नमन करें इस धरा को, जन्मे वीर सपूत।
चरण रजत कण जो मिले,शोभित भाल भभूत।।
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शीला सिंह बिलासपुर हिमाचल प्रदेश 🙏