पहले प्यार में
तब आई नव तरुणाई थी,
दिल जवांँ ने ली अंगड़ाई थी,
चांँदनी रात दिल को भाती थी,
प्रियतमा की छवि दिखलाती थी।
दसवें वर्ग में पढ़ता था तब,
पहले प्यार में डूबा था जब,
दिल धक्-धक् करता था तब,
कदम क्लास में रखता था जब।
सूर्ख गुलाब-सा बदन था उसका,
मृगनयनी चंचल सुंदर बाला थी,
घुंघराली काली जुल्फें उसकी,
दिखने में सुंदर मधुबाला-सी थी।
चंद्र सरीखा मुखड़ा था उसका,
गाल-लाल-गुलाल सजा हो,
कपोल कमल-पंखुड़ी जैसे,
स्मित छवि शीतल हवा हो।
काया उसकी पतली-सी थी,
वक्ष युगल नव उभार लिए,
खुली जुल्फों से ढंँके हुए वे,
ध्यानाकर्षण का भार लिए।
दिल में मची रहती थी हलचल,
उसकी झलक पाने को हरपल,
दसवीं पास कर बाहर आया जब,
उसकी एक खबर न पाया अब तक।
मौलिक व स्वरचित
©® श्री रमण ‘श्रीपद्’
बेगूसराय (बिहार)