पहले न फिर हाँ
लघुकथा
पहले न फिर हाँ
*************
कहते हैं कि जोड़ियां पहले से ही ईश्वर तय करके हमें दुनियां में भेजता है।कुछ ऐसा ही मेरे साथ हुआ।
मेरी दूर की एक भतीजी ने मेरी स्व. सास से जब उनकी बेटी का मुझसे रिश्ता जोड़ने का सुझाव दिया, तो उन्होंने सीधे सीधे मना कर दिया। कारण जो भी रहा हो।
इसके बाद मेरे पिताजी का निधन हो गया।
फिर मेरी शादी का दायित्व मेरे ताऊजी के ऊपर पूरी तरह आ गया।वैसे भी पिताजी भी जब थे तब भी उन्होंने यह जिम्मेदारी ताऊ जी के ऊपर छोड़ रखा था।
अब इसे संयोग नहीं तो क्या कहा जाये कि मेरी चचेरी भाभी उसी शहर में रहती थीं। मेरी ससुराल से उनका आत्मीय संबंध था। एक दिन फिर शादी की चर्चा के बीच मेरा जिक्र हुआ। तब सासू जी ने हथियार डाल सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दिया।क्योंकि इस अंतराल में उन्होंने बहुत रिश्ता देखा।पर हर जगह कुछ न कुछ अड़चनें आ ही जाती थीं।
अंततः ससुराल पक्ष ने अपनी स्वेच्छा से जो किया अच्छा किया, हमारे ताऊजी ने किसी भी तरह की कोई मांग नहीं रखी। मेरी धर्म पत्नी को बड़ी माँ के कहने के बाद भी मैं देखने नहीं गया था।
और अंततः 15.2.2001 को हमारी शादी संपन्न हो गई, ताऊ जी ने हमारे पिताजी के सपनों से भी बेहतर ढंग से अपना दायित्व निभाया।
आज शादी के इतने वर्षों बाद उस पहले न फिर हाँ के बारे में सोचता हूँ तब लगता है कि हमारे जीवन के एक एक पल का हिसाब किताब पूर्व नियोजित है।बस हम जान नहीं पाते।
अब इसे संयोग कहें या फिर जोड़ियां ऊपर वाला पहले से ही तय करके हमें भेजता है।
फिलहाल आज हम अपने दाम्पत्य जीवन का निर्वहन करते हुए ईश्वरीय व्यवस्था के प्रति नतमस्तक हैं।
? सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.