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21 Oct 2019 · 2 min read

“पहले जैसी दीवाली”

समय के साथ सब कुछ बदला और बदल गई दीवाली भी
वो बचपन वाली दीवाली जो साल भर की आखरी उम्मीद होती थी हर ख्वाहिश को पूरा करने की,जो लेना हो दीवाली पर लेंगे,कुछ अच्छा खाना हो दीवाली पर बनायेंगे,बिगड़ी चीज़ें सुधारना हो या रिश्ते,सब का बोझ दीवाली के कंधों पर होता था…साल भर में एक ड्रेस मिलती थी वो भी अगले दो साल के नाप की जो माँ बाबा खुद ही ले कर आते थे ,शरीर पर फिट आये न आये मन में पूरी तरह फिट हो जाती थी वो…
दीवाली का “पर्यायवाची” अगर “साफ सफाई” को कहा जाये तो गलत नहीं होगा(स्वच्छ घर अभियान,☺️)घर का कोना कोना मनाता था दीवाली,और साल भर की “खोया पाया” समस्या का हल भी तभी होता था….
पुराने बक्सों से वो गद्दे रज़ाई निकालने पर उन पर कुलमंदियाँ खाना और सर्दियों के कपड़े पहन कर बेवजह पसीने से तरबतर हो जाना,अब तो बस इन यादों की गर्मी रह गई है☹️
अब ये १०-१० साल चलने वाले पेंट्स ने हर साल की नील वाली पुताई में रंग जाने का मौका भी छिन लिया,सिक्को से साल भर भरे जाने वाले गुल्लक का खज़ाना भी तो दीवाली में ही निकाला जाता था…
रंगीन अबरी, पुराने अखबारों की डिज़ाइन वाली कटिंग से अलमारियां सजती थी,लड़ियाँ,पुरानी ऊन के बंदनवार,मिट्टी के दिये,गेरू,चुने और होली के बचे हुए रंगों से बनी रंगोली घर के साथ मन को भी सजा देती थी..
अब चाइनीज़ लड़ियों,स्टीकर वाली रंगोली,डिज़ाइनर मोमबत्ती दीवाली को दीवाली का अहसास नहीं होने देती☹️
अब “रिश्तेदारों” से ज्यादा दीवाली पर “ऑफर सेल”का इंतज़ार रहता है,गुंजिया,मठरी,बेसन के लड्डू की मिठास भी “कैडबरी” के डब्बे में घुल गई है?,
मुर्गा छाप,टिकड़ी,फुलझड़ी,chakri,अनार पहले दीवाली की पहचान थे अब प्रदूषण और शोर के अलावा कुछ भी नहीं,और कहीं न कहीं इसकी वजह भी हम ही हैं…..
सच में अब दीवाली दिवाली न रही
जैसी पहले थी वो वाली न रही☹️

“इंदु रिंकी वर्मा”

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 748 Views
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