पहली बार गिरा था वो भी
आसमान में उड़ने वाला एक परिंदा बोला था
पहली बार गिरा था वो भी जब उसने पर खोला था
उसके पूरे बदन ने हवा में खाया एक हिचकोला था
पहली बार गिरा था वो भी जब उसने पर खोला था
उसने भी सोचा था अब न औरों से जुड़ पायेगा
जैसे उड़ते हैं सारे,वो वैसे न उड़ पायेगा
गुपचुप बैठा रहा घोसले में शंकित मन डोला था
पहली बार गिरा था वो भी जब उसने पर खोला था
सबने कहा उसके पंखों की ताकत में वो बात नहीं
नीलगगन की छुए बुलन्दी उसकी ये औकात नहीं
टूट चूका था मनोबल उसका मन से बड़ा ही भोला था
पहली बार गिरा था वो भी जब उसने पर खोला था
एक बार एक सच्चा साथी उसके पास चला आया
समझी मित्र की पीड़ा और फिर बड़े प्यार से समझाया
अन्तःमन का भय विस्मृत कर आत्म-शक्ति-रस घोला था
पहली बार गिरा था वो भी जब उसने पर खोला था
ऊँची पहाड़ी की चोटी पर ले जाकर ये खेल किया
बोला आँखें बंद करो और बेदर्दी से धकेल दिया
पंख को खोलो और फड़फड़ाओ साथी ने बोला था
पहली बार गिरा था वो भी जब उसने पर खोला था
आँखें बंद थी किन्तु खुले पर पूरा जोर लगा डाला
सोचा अंतिम दिन उसने पंखों को खूब हिला डाला
आज तो जीवन उसकी खातिर मौत का एक हिंडोला था
पहली बार गिरा था वो भी जब उसने पर खोला था
हे प्रभु मुझे बचा लो मैंने क्यों उड़ने का ख्याल किया
धीरे-धीरे उसके परों ने उसका बोझ सँभाल लिया
उड़ते देखा खुद को गगन में बदला वक़्त ने चोला था
पहली बार गिरा था वो भी जब उसने पर खोला था
बोला साथी तुम्हे शुक्रिया प्रभु के प्रति आभार किया
नीलगगन की छुई बुलन्दी सपनों को साकार किया
आज हवा में उसने पंखों की ताकत को तोला था
पहली बार गिरा था वो भी जब उसने पर खोला था
नित नवीन संघर्षों में तपकर ही कुन्दन निखरेगा
सीख सकेगा वही तैरना जो पानी में उतरेगा
उड़ते-उड़ते बात पते की यही परिंदा बोला था
पहली बार गिरा था वो भी जब उसने पर खोला था