पहली किताब
आज अपनी पहली किताब हाथ में लेते हुए
मॉं तुम बहुत याद आ रही हो
तुम्हें देना चाहती थी, सबसे पहली प्रति
दे न सकी, कुछ जल्दी चली गयी तुम
अब दूर से बस ,मुझे ही देखे जा रही हो
मॉं तुम बहुत याद आ रही हो
हर पन्ना पलटती हूं, तो अक्स तुम्हारा दिखता है
हर कविता पढ़ती हूँ तो ,आशीर्वाद तुम्हारा मिलता है
शब्दों सी तुम ही तुम बिखरी हो अंतर्मन में
हर छन्द तुमसा लगता है
मेरे माथे पर ,ममता का चुम्बन सज़ा रही हो
मॉं तुम बहुत याद आ रही हो।
सुनीता सिंघल