पहली अहसास
कई बार मुझे समझ नही आता की ये बारिश मुझे भींगाना चाहती है, कि मैं खुद मिट्टी बनकर उसमे भींगना चाहता हूं।
कुछ कहना तो चाहता हु लेकिन वह कहानी बन कर मेरी डायरी में बस जाती है।
लिखना तो चाहता हूं उसे लेकिन वो श्याही बन कर मेरे पेन में समा जाती है।
पढ़ना भी चाहता हूं उसे लेकिन बारिश में भींगी हुइ पन्ने बन जाती है जिसे चाह कर भी पढ़ नही सकता।
अब चाहत ना कहने की लिखने की न पढ़ने की है,
चाहत है तो केवल तुझसंग इस बारिश में भीगने की।।