पहला प्यार
पहला प्यार…
मैं रूठूँ तो मनुहार लिए, चंचल आँखों का वार लिए
बचपन जैसा त्यौहार लिए, वो आया पहला प्यार लिए
जिस खेल में वो छुप जाता था, वो खेल मुझे नहीं भाता था
चरखी ख्वाबों की लाता था और नींद पतंग कर जाता था
अनछुई अनकही बातों सा, आँखों में कटी कुछ रातों सा
संग साथ चले कुछ कदमों सा, बिगड़े बनते कुछ नग्मों सा
हर रेत घरौंदा यूँ टूटा, बचपन संग सब कुछ छूटा
यही प्रश्न बचा रूठा रूठा, क्यों उम्र के पँछी ने लूटा
जब याद आज भी आता है, मुझे छुईमुई कर जाता है
हाँ हाथ छूट जो जाता है, बस याद वही तो आता है
हर घड़ी लिए जो साथ फिरूँ, लफ़्ज़ों में क्यों जज़्बात भरूँ
अब और भला क्या बात करूँ कितना भूलूं क्या याद करूँ