वो मां ही थी
अचानक एक दिन
पूछ बैठा मेरा दोस्त
बताओ तुम्हारा पहला प्यार
कौन था ? कैसा था ? कब किया था ?
दोस्त की बात सुन
अवाक सा मैं
कुछ सोचने लगा
फिर कुछ सकुचाते , शर्माते
आंखों में प्यारी सी चमक लिए
मैंने कहा
अनजान था मैं
उस वक्त अपने आप से
दुनिया जहान से
खुद की पहचान से
जब प्यार हुआ था
मुझे उससे
जो मेरी थी मैं उसका था
हम एक-दूसरे की
आंखों में खो जाते थे
एक दूजे के बिन रह नहीं पाते थे
स्मरण नहीं मुझे
उसका प्रथम स्पर्श
उसकी प्यार भरी गोद में
समाने का असीम हर्ष
किंतु यह अनकहा प्यार ही था
जो हमारे बीच
बड़े निश्छल भाव से पल रहा था
जब वह अपनी प्यार भरी उंगलियां
मेरे कपोल , माथे और सिर पर
स्नेह से फिराती थी
प्यार बरसाती थी
मेरी एक मुस्कान
उसकी आंखों में दुनिया जहान की
खुशी ले आती थी
वह और कोई नहीं
मेरी मां
प्यारी मां ही थी ।
अशोक सोनी
भिलाई ।