पहला प्यार – अधूरा खाब
तारिका नौंवी कक्षा कि छात्र थी बेहद खूबसूरत एव आकर्षक नाक नक्स तीखी हर बात में सबसे आगे ।
मैं उसके घर पहली बार गया तो उसे देखता ही रहा उसके पिता सरकारी विभाग में कार्यरत थे उसके घर जाने का भी अजीब संयोग बना ।
तारिका घर के बाहर अमरूद का पेड़ था उसके पिता जी अमरूद के पेड़ से अमरूद तोड़ने के प्रयास में फिसल गए और उनके दाहिने हाथ मे चोट आ गयी डॉक्टरों का कहना था हाथ कि हट्टी टूट गयी है।
मेरे घर वालो ने कहा मैं तारिका के घर जाँऊ और उसके पिता जी का हाल चाल पूंछ कर आऊ मुझे भी बहाने की तलाश थी मैं बिना देर किए दिन के लगभग तीन बजे तारिका के घर पहुंचा ।
सौभगय से तारिका ने ही मुख्य द्वार खोला पूछा आप कौन मैं तारिका कि विनम्र शौम्य खूबसूरती देखता ही रह गया वह बोली ओ मिस्टर कहां खो गए कौन है ?
आप कहाँ से आये है ?
और क्यो आये है ?
मैंने अपना परिचय एक सांस में बिना रुके हुए दिया वह हंसते हुए बोली आराम से भी बता सकते है अपने बारे में हंसते हुए वह ऐसी प्रतीत हो रही थी जैसे वह कोई संगमरमर कि मूरत बोल उठी हो उसने कहा ठीक है आप रुकिए मैं पापा को सूचित करती हूं और वह अंदर गयी और पांच मिनट बाद निकल कर बाहर आई और बोली पापा अभी सो रहे है मम्मी ने आपको अंदर बुलाया है।
मैं घर के अंदर दाखिल हुआ मेरे घर मे दाखिल होते ही तारिका कि मम्मी सुचिता बोल उठी बेटी तुम्हे इन्हें तो कम से कम पहचानना ही चाहिए क्योंकि इनके और अपने परिवार बहुत भवनात्मक लगाव है तारिका कि हाजिर जबाबी का कोई सानी नही था बोली मम्मी मैं इनके घर कभी गयी नही और ये पहली बार हमारे घर आये है। कैसे पहचान लेती ?
तारिका की मम्मी सुचिता बोली अच्छा तुम लोग आपस मे बाते करो तब तक मैं शर्बत बनाती हूँ बहुत गर्मी है चाय ठीक नही रहेगी और वह किचेन में चली गयी उनके जाते ही तारिका ने पूछा आप किस क्लास में पढ़ते है? साथ ही साथ सवाल जबाब का शिलशिला चल पड़ा कुछ देर बाद वह एक एलबम लेकर आई और कॉलेज में सरस्वती पूजन के दिन अपने नृत्य के बिभन्न मुद्राओं को के फोटोग्राफ दिखाने लगी वास्तव मे नृत्य कि मुद्राओं में वह विल्कुल सरस्वती कि स्वरूपा ही प्रतीत हो रही थी कोई भी उसके नृत्य कि भाव भंगिमाओं को देख कर प्रभावित हुए बिना नही रह सकता था ।
बातो का सिलसिला लगभग आधे घण्टे चला तब तक तारिका कि मां सुचिता ट्रे में रूह आफ़ज़ा शर्बत एव नमकीन लेकर दाखिल हुई और साथ मे पापा शोभित मंगल पांडेय जी हाथ मे प्लास्टर गले मे लटकाए ड्राइंग रूम में दाखिल हुए तारिका के पापा मुझे जानते थे उन्होंने बताया कि बैठे बैठे खेल खेल में हाथ टूट गया तारिका की मम्मी परिहास अंदाज़ में बोल गयी जाईये जी आपने बचपन मे खाने पीने खेलने कूदने एव शारीरिक विकास पर ध्यान नही दिया जिससे कि हाथ मामूली सा तनाव नही बर्दास्त कर सका वातावरण में ठहाके गूंज गये।
तारिका भी मम्मी पापा कि नोक झोंक में खिलखिला कर हंसने लगी हंसते ऐसी लग रही थी जैसे पुरनमासी का चाँद शरद ऋतु में अपनी धवल चाँदनी से प्रेम के संदेश का सांचार कर रहा हो ।
मैंने चलने की अनुमति मांगी और घर जाने के लिए ड्राइंग रूम से बाहर निकलने लगा तारिका के मम्मी पापा ने तारिका से मुझे मुख्य द्वार तक छोड़ने को कहा वह साथ साथ अपने घर के मुख्य द्वार तक आयी और मुझे अपनी विशेष शैली में विदा किया चलते चलते मैंने भी उंसे अपने घर आने का निमंत्रण दे दिया जिस पर उसकी कोई प्रतिक्रिया नही थी।
मैं घर लौट कर आया घर वालो ने शोभित मंगल पांडेय जी का हाल चाल पूछा बताने के बाद मैं सो गया फिर दूसरे दिन सुबह उठा पूरी रात ख्वाबों में तारिका को ही भविष्य के जीवन उद्देश्यों के पथ के आलोक के रूप में देखता एव संजोता रहा एव तब से नियमित उसके ख्यालों ख्वाहिश ख्वाबों में डूबा सोचता विचार योजना नियोजन काल्पनिक उड़ान भरता रहा ।
जाने कैसे एक वर्ष बीत गए पता ही नही चला प्रतिदिन यही लगता जैसे अभी अभी उसके ड्राइंग रूम से उसकी मुस्कान खिलखिलाहट कि जिंदगी दौलत लेकर लौटा हूँ।
रविवार का दिन एक दिन वह वह ठीक उसी समय मेरे घर मे दाखिल हुई जिस समय मैं घर दाखिल हुआ यानी तीन बजे दिन में मेरे पूरे घर मे जैसे खुशियों ख़ुशबू कि रौशन चिराग आ गयी हो जिसके आने से मेरे घर कि दीवार दरों के जर्रे जर्रे में मुस्कान एव उजियार कि चमक आ गयी हो तारिका मेरे परिवार के प्रत्येक सदस्य जैसे मेरी माँ आदि से बात करती रही एव कनखियों से मुझे देखती मैं भी परिजनों से आंख चुराकर उंसे एकटक निहारने कि कोशिश करता उंसे मेरे घर आये चार पांच घण्टे हो चुके थे वह मेरे परिवार के सभी सदस्यों से मिल चुकी थी एव सबकी चहेती बन चुकी थी उसने चार पांच घण्टे में ही सभी बड़े छोटो का दिल अपने बेहतरीन व्यवहार एव चुलबुली अंदाज़ से मोह लिया था।
तारिका अपने घर लौटने के लिए जब सबकी अनुमति लेकर चलने को हुई तब वह मुस्कुराते हुए मेरे पास आई और बोली आपसे तो कुछ बात ही नही हो सकी फिर कभी और उसने मुझसे अंग्रेजी ग्रामर का किताब मांगा जिसे मैंने उसे दिया ।
जब तारिका मेरे घर से बाहर निकलने को हुई माँ ने कहा कि मैं उसे उसके घर के पास देवी जी के मंदिर तक छोड़ आऊ उसके घर एव मेरे घर के बीच की दूरी डेढ़ किलोमीटर थी और देवी जी का मंदिर एक किलोमीटर हम और तारिका एक साथ निकले कुछ देर चुप रहने के बाद वह स्वयं बोली आपने कैरियर कि कोई प्लानिंग जरूर कि होगी?
मैंने कहा अवश्य उसका दूसरा सवाल था आप अपने कैरियर को पाने के लिए किस प्रकार स्टडी करते है ?
किस विषय मे रुचि है ?
किस फील्ड में जाना पसंद करेंगे?
कुछ इसी तरह से मैं भी उससे सवाल करता रहा पता नही कब क्या जी का मंदिर आ गया तारिका बोली अब आप घर लौट जाए मैं चली जाँऊगी मैं घर के लिए चलने को मुड़ा वह अपने घर के लिए जब वह कुछ दूर निकल गयी मैं पुनः मुड़ा उंसे तब तक देखता रहा जब तक वह नज़रों से ओझल नही हो गयी ।
तब से मैं प्रति दिन तारिका को ही जीवन का उद्देश्य मानकर हर कदम बढाने लगा मैंने सोच लिया मुझे सर्वश्रेष्ठ उपलब्धियो को हासिल करना होगा तभी तारिका के प्रेम का सपना पूरा हो सकता है तदानुसार मेहनत करता जा रहा था और नज़रों एव दिल मे सिर्फ प्रेरणा तारिका एव उंसे पा लेने कि जबजस्त चाहत ।
ईश्वर नाम कि भी कोई शक्ति दुनियां में सबसे शक्तिशाली होती है मेरे परिवार में कुछ ऐसी आपदाओं का दौर शुरू हुआ कि मुझे नौकरी करनी पड़ी मुझे मिली नौकरी सरकारी एव सम्मान जनक अवश्य थी ।
मैंने परिवार के अपने संरक्षक के माध्यम से उसके पिता के पास विवाह का प्रस्ताव प्रेषित किया उसने इनकार तो नही किया सिर्फ इतना ही कहा कि उसने अपने अपेक्षित कैरियर को अभी प्राप्त नही किया है यदि इंतजार कर सकते हैं तो करे और कोशिश करे स्वंय को भी अपडेट करते हुए उच्च करियर को प्राप्त करने का प्रयत्न जारी रखे ।
तीन वर्षों के इंतज़ार के बाद मेरा विवाह हो गया मुझे पता चला कि उसने अपने अपने अपेक्षित कैरियर को प्राप्त करके भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी से अंतरजातीय विवाह कर लिया।
मेरे लिए सिर्फ कुछ पल प्रहर की यादे जिसने मुझे जीवन मे पहली बार प्यार का एहसास जगाया कि अविस्मरणीय यादे ही शेष है जो अब भी लगता है इंतजार करती है।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।