पहचान
बिन चेहरों के कभी ,
पहचान नही होती ।
यह सरल बहुत जिंदगी ,
पर आसान नही होती ।
रवि बादल में छुपने से ,
कभी साँझ नही होती ।
छूकर शिखर हिमालय का ,
तृष्णा कभी तमाम नही होती ।
पाता है मंजिल बस वो ही ,
राहों से पहचान नही होती ।
चलता है मंजिल की खातिर ,
निग़ाह मगर आम नही होती ।
बिन चेहरों के …
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.. विवेक दुबे”निश्चल”@…