*** पहचान ****
पहचान छुपाकर ……… पहचान बढ़ाना
चाहते हो ।
ये कैसी दोस्ती
का हाथ बढ़ाना
चाहते हो ।
बड़ा नाजुक
रिश्ता होता है
दोस्ती का
क्या यूं ही
गंवाना
चाहते हो ।।
प्रिय दोस्ती में
दिल खोल के
रख देते हैं दोस्त
तुम पहचान
छुपाये रखते हो ।।
क्या दोस्ती में कभी
खाया है धोखा
मेरी तरह जो
छुप-छुप के
रोया करते हो ।।
ऐ दोस्त मत डूबो
गमगिनियों में यूं कि
जमाना हमको भूले
अब भी खत्म नहीं
हुआ है सब कुछ
जीवन बाकी है ।।
इस बेदर्द जमाने में
पहचान बनानी है हमें
पहचान छुपानी नहीं ।।
दोस्ती का हाथ बढ़ाते
हो तो दिल की ………. गहराइयों को समझो
….. पहचान ……
छुपाकर नहीं
पहचान बताकर
हाथ बढ़ाओ दोस्ती का
?मधुप बैरागी