‘पहचान’
‘पहचान’
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आया,’पहचान’ जानने का वक्त;
‘पहचान’ जानो अब,तुम हमारी;
हमको है , अपनी ही राष्ट्र प्यारी;
हम निज भारत के हैं,’राष्ट्रभक्त’;
आया, पहचान जानने का वक्त।
सबकी होती है, अपनी पहचान;
जो छुपी, निज बात-व्यवहार में;
ये तो दिखता, मानव के प्यार में;
बच्चों को सदा, अपना नाम देते;
माता-पिता ही,जीवन में शुरू से;
फिर वे,पहचान पाते निज गुरु से;
बड़े हो पहचाने जाते,शूट-बूट से;
माता-पिता को भी,पहचान मिले;
सदा ही,निज प्यारे पूत-कपूत से;
मानवता की, ऐसी पहचान नहीं;
जो कोई मानव का,पहचाने रक्त;
अपने दुश्मन पे,सदा नजर रखो;
उसे पहचान तू,रहो उससे सख्त;
आया, ‘पहचान’ जानने का वक्त।
खुशबू से,पहचाने जाते हर फूल;
दोषी की पहचान है,उसकी भूल;
हरेक कवि को , पहचान दिलाए;
काव्य जो रचित हो,मन बहलाए;
दोस्ती है, पहचान की सही डगर;
हाथ लकीर से भी, पहचाने शहर;
और न कोई, ‘पहचान’ समझानी;
कुछ ‘पहचान’ छुपी,हरेक कहानी;
यही सब पहचान होता, संसार में;
असली पहचान तो है,’आधार’ में।
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स्वरचित सह मौलिक
……✍️पंकज ‘कर्ण’
…………..कटिहार।।