** पहचान से पहले **
** गीतिका **
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बहुत धोखे हुआ करते पतन उत्थान से पहले।
कदम हर सोच कर रखना बनी पहचान से पहले।
पथिक तुम राह के आकर्षणों में खो नहीं जाना।
हमें गंतव्य तक जाना मगर तूफान से पहले।
किसी को भी नहीं देना कभी अवसर शिकायत का।
सभी संशय मिटा देना यहां प्रस्थान से पहले।
बिना सूरज कभी देखो न अंधेरा मिटा करता।
सवेरा कब हुआ करता कहीं दिनमान से पहले।
जगा देना किरण नव आस की अपने हृदय में तुम।
जगह वह छोड़ देना हो रहे अपमान से पहले।
निराशा को कहीं हर हाल बिल्कुल स्थान न देना।
हुआ करती है’ खामोशी सदा तूफान से पहले।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २०/१०/२०२३