* पहचान की *
** गीतिका **
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है जरूरत नहीं आज पहचान की।
देख लो रौशनी खूब दिनमान की।
फूल खिलने लगे मुस्कुराने लगे।
खूब कीमत रही आज मुस्कान की।
मुश्किलें जब कभी सामने आ गयी।
चाहतें हो गयी व्यर्थ नादान की।
पूछता जो रहा मंजिलों का पता।
कुछ करेंगे मदद आज अंजान की।
वक्त पर जब नहीं हो रही बारिशें ।
बात करते रहे ज्ञान विज्ञान की।
पूर्ण कर्तव्य अपना समझ कर करें।
अब जरूरत नहीं व्यर्थ गुणगान की।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, १४/०१/२०२४