पसीने से ख़ुद को तो भिगाया करो
ग़म की हो या हो ख़ुशी का ही पल
दोस्तों को तुम मत भूल जाया करो/
रिश्तों में कुछ नयापन सा आ जाएगा
संग उनके तो महफ़िल सजाया करो/
मिल जाएँगी ख़ुशियाँ तो बे-इंतहा
रोतों को ही अगर तुम हँसाया करो/
दौड़ते को तो गिराते ही सब हैं यहाँ
गिरते को अब तुम तो उठाया करो/
राह कठिन हो,मिलेगी मंज़िल मगर
पसीने से ख़ुद को तो भिगाया करो/
दायित्वों का गर बोझ बढ़ ही गया
बारिश में तब खुलकर नहाया करो/
लौट बचपन में थोड़ा तुम तो चलो
काग़ज़ की नाँव कभी बहाया करो/
जो तुम्हारी फ़िकर करते रहते सदा
उनको तो तुम मत भूल जाया करो/
पा जाओ ही जब उन्नति का शिखर
मग़रूर कभी भी मत हो जाया करो/
बुज़ुर्गों की नेकी से ही फलते हैं हम
उनसे तो अदब से पेश आया करो/