“पसरल अछि अकर्मण्यता”
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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भेद -भाव ,क्षेत्रीयता,ऊंच-नीच,
जातिवादिता आ अकर्मण्यता
क परिवेश मे मैथिल अखनो धरि जीवि रहल छथि
व्यर्थ क ,अकाजक ,कटुता
प्रतिद्वंदिता ,द्वेष ,अवहेलनाक
दावानल मे सूढाह अपना केँ दिन- राति क रहल छथि
नाटकीय भंगिमा, निज प्रतिष्ठा ,
अपन अभिमान ,अपना केँ श्रेष्ठ बुझि
आन केँ निम्न आंकलन करि तिरस्कार क रहल छथि
निज प्रशस्ति ,प्रशंसा ,पुरस्कार ,
प्रचार -प्रसार ,प्रस्तुति ,परिधानक
प्रदर्शनीय मे अपन नाटकीय भंगिमा केँ देखा रहल छथि
पाग ,चानन, धोती- कुर्ता ,अंगा,
तौनी, मुँह मे पान,खैनी ,गुटका,
लॉन्ग इत्यादि संघरि केँ मैथिलक प्रमाण द रहल छथि
मुदा घर मे कनियाँ, बहुरिया
बच्चा आ बुच्ची सँ हिन्दी आ
अङ्ग्रेज़ी मे बात करि मैथिली क दिग्गज कहा रहल छथि
भाषा ,संस्कृति ,संस्कार ,रीति
रिवाज,गीत -नाद ,प्राती,संध्या
मिथिला लिपि ,आचार -विचार सब बुझु कानि रहल छथि
स्वप्न मिथिला राज्यक साकार
केना एहि परिवेश मे भ सकत
मैथिल जनमानस प्रश्न क विचार सब दिन क रहल छथि !!
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डॉ लक्ष्मण झा परिमल
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत
18.03.2024