पशु बनाम मानव
पशु बनाम मानव
सुनसान से निर्जन जंगल में
करती मादा विचरण जंगल में
नर पशुओं के बीच है रहती
न यौन शोषण का दंश सहती
रुत आने पर ही होए सहवास
न पूजा – पाठ न व्रत उपवास
कोई धर्मग्रंथ न ही धर्मस्थल है
नैतिक मूल्य फिर भी प्रबल है
फिर भी इनकी पशुवृति बताई
पशुवृति कहाँ है समझ न आई
विनोद सिल्ला कुछ सीखो इनसे
जानो नैतिकता इनके जीवन से
-विनोद सिल्ला