Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
4 Feb 2018 · 3 min read

पवित्र साध्य है बेटी

पवित्र साध्य है बेटी
————————-

आन कहूँ या शान कहूँ ! मान कहूँ या मर्यादा ! खुशियों की चाबी कहूँ या हिस्सा कहूँ मैं आधा |

हाँ ! सब कुछ तो है बेटी | आन भी है ,शान भी है ,जान भी है और मान भी है | बेटी की कोई सीमित परिभाषा या कोई निश्चित पर्याय नहीं है | बेटी घर में एक कल्पवृक्ष की तरह है ,जो घर के आँगन में सदैव फलदायी बनकर पनपती है और अपनी मोहक और मासूम मुस्कान के साथ ही अनन्त , असीम और अनन्य खुशियों से सदन के प्रत्येक सदस्य का दामन भर देती है | घर में उसकी प्रत्यक्ष उपस्थिति ही स्वर्ग का आभाष करवाती है , क्यों कि बेटी विधाता की अतुल्य ,अद्भुत , अद्वितीय , अप्रतिम और आंतरिक शक्तियों से लबरेज वह सुन्दरतम रचना है ,जिसके आगे स्वयं विधाता भी नतमस्तक होता है | इसके अन्तस् में विद्यमान भावनात्मक एवं रचनात्मक प्रबलता और विशुद्ध चैतन्य की उपस्थिति इसके आंतरिक और बाह्य स्वरूप में चार चाँद लगा देते हैं | इसकी भोली और मासूम सूरत और विलक्षण एवं अतुलनीय सीरत दोनों एकाकार होकर इसके सरल , सहज ,नम्र और अनिर्वचनीय स्वरूप को प्रकट करते हैं | बेटी का यही विलक्षण चैतन्य स्वरूप प्रकृत्ति एवं संस्कृति की अनमोल धरोहर के रूप में स्वयं प्रकृत्ति- स्वरूप बनकर उभरता है , जो कालान्तर में वैश्विक सृजना बनकर “विश्व-विधाता” एवं “जीवन-दाता” स्वरूप में प्रकट होती है | बेटी को यदि “जीवन-देवता” भी कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी | लेकिन बेटी के इस यथार्थ एवं असंदिग्ध स्वरूप को जानने के लिए “पवित्र सोच एवं साधन” की दरकार है | क्यों कि यह सर्वविदित है कि किसी भी “पवित्र साध्य” की प्राप्ति या उसे जानने के लिए सदैव “पवित्र-साधन” का होना अत्यावश्यक है |
परन्तु अफ़सोस ! कि सदियों से मानव जीवन को सार्थक करके उसे महकाने वाली पुण्यात्मा बेटी के साथ सदैव ही अन्याय हुआ है | वह पग-पग पर छली गई है ! सोचनीय बात यह है कि उसके साथ छल करने वाला कोई दूसरा नहीं , स्वयं अपने ही होते हैं | कभी स्वयं की जननी उसे मंदिर की सीढ़ियों पर छोड़ देती है तो कभी बोरे में बंद करके दम घुटने के लिए तड़पता छोड़ देती है | कभी सरोवर के ठंडे पानी में बेजान तैरने पर मजबूर करती है तो कभी कंटीली झाड़ियों के कांटों को उसका पालना बना देती है | यही नहीं , कभी दादा-दादी , नाना-नानी , पिता ,चाचा और मामा भी अपनी मानवीय हदें पार करते हुए मासूम सी प्यारी बेटी को गर्भ के भीतर ही परलोक-गमन की टिकट प्रदान कर देते हैं | यदि बाह्य दुनियां में आँखें खोल भी लेती है तो रही-सही कसर वो तब पूरा कर लेते है ,जब उसे श्वानों के बीच किसी कचरे के डिब्बे में डाल देते हैं |
आखिर क्या है ये ? और क्यों है ये ? क्या बेटी बोझ है ? क्यों उसे इस तरह की अमानवीय पीड़ादायक अग्निपरीक्षा देकर जीवन जीने का सर्टिफिकेट प्राप्त करना होता है | बहुत हो चुका है अब ! अब ओर नहीं ? कब तक हम फूल जैसी बेटियों के साथ अमानवीय अत्याचार करते रहेंगे | आज आह्वान करता हूँ , मैं समाज के उन ठेकेदारों का , कि वे आगे आएं और समझें कि बेटी बोझ नहीं है | बेटी तो जल है , बेटी तो कल है , बेटी तो फल है | बेटियों के बिना ये सम्पूर्ण जीवन विकल है | आज हमें अपनी रूढ़िवादी मान्यताओं ,सोच और संकुचित मानसिकता को त्यागकर बेटियों को अपनाना होगा | तभी सृष्टि भी नवनिर्माण में हमारा साथ देगी ,अन्यथा सृष्टि विनाश तो सुनिश्चित ही है |
—————————————
– डॉ० प्रदीप कुमार दीप

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 621 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
Typing mistake
Typing mistake
Otteri Selvakumar
पापा
पापा
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
कितनी अजब गजब हैं ज़माने की हसरतें
कितनी अजब गजब हैं ज़माने की हसरतें
Dr. Alpana Suhasini
जिस इंसान में समझ थोड़ी कम होती है,
जिस इंसान में समझ थोड़ी कम होती है,
Ajit Kumar "Karn"
मानवता का मुखड़ा
मानवता का मुखड़ा
Seema Garg
रास्ते और राह ही तो होते है
रास्ते और राह ही तो होते है
Neeraj Agarwal
तेवरी आन्दोलन की साहित्यिक यात्रा *अनिल अनल
तेवरी आन्दोलन की साहित्यिक यात्रा *अनिल अनल
कवि रमेशराज
..
..
*प्रणय*
अहाना छंद बुंदेली
अहाना छंद बुंदेली
Subhash Singhai
कि  इतनी भीड़ है कि मैं बहुत अकेली हूं ,
कि इतनी भीड़ है कि मैं बहुत अकेली हूं ,
Mamta Rawat
3546.💐 *पूर्णिका* 💐
3546.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
ग़ज़ल- तू फितरत ए शैतां से कुछ जुदा तो नहीं है- डॉ तबस्सुम जहां
ग़ज़ल- तू फितरत ए शैतां से कुछ जुदा तो नहीं है- डॉ तबस्सुम जहां
Dr Tabassum Jahan
मुकाम
मुकाम
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
आप सच बताइयेगा
आप सच बताइयेगा
शेखर सिंह
गणतंत्र का जश्न
गणतंत्र का जश्न
Kanchan Khanna
वक़्त और नसीब
वक़्त और नसीब
gurudeenverma198
भारत हमारा
भारत हमारा
Dr. Pradeep Kumar Sharma
औरतें
औरतें
Neelam Sharma
न कोई जगत से कलाकार जाता
न कोई जगत से कलाकार जाता
आकाश महेशपुरी
रतन चले गये टाटा कहकर
रतन चले गये टाटा कहकर
Dhirendra Singh
ये मतलबी ज़माना, इंसानियत का जमाना नहीं,
ये मतलबी ज़माना, इंसानियत का जमाना नहीं,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
*मनः संवाद----*
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
पिछले पन्ने 10
पिछले पन्ने 10
Paras Nath Jha
*जो सजे मेज पर फल हैं सब, चित्रों के जैसे लगते हैं (राधेश्या
*जो सजे मेज पर फल हैं सब, चित्रों के जैसे लगते हैं (राधेश्या
Ravi Prakash
अब क्या करे?
अब क्या करे?
Madhuyanka Raj
सत्संग
सत्संग
पूर्वार्थ
क्यों दिल पे बोझ उठाकर चलते हो
क्यों दिल पे बोझ उठाकर चलते हो
VINOD CHAUHAN
"मानुष असुर बन आ गया"
Saransh Singh 'Priyam'
"ओ मेरी लाडो"
Dr. Kishan tandon kranti
बारिश की हर बूँद पर ,
बारिश की हर बूँद पर ,
sushil sarna
Loading...