पवनपुत्र हनुमान
जय-जय हे अंजनी के लाला,
बीर बजरंगी पवनपुत्र हनुमाना।
मंगल हीं मंगल हो जो पुकारे तेरा नाम,
राम सिया के अति प्यारे संकटनाशन करुणा निधान।
मंगल को जन्मे मंगल हीं करते, मंगलवार को जो करे तेरी पुजा,
मंगलमय हीं जीवन हो कष्ट निकट आवै नहीं कोई दुजा।
जनकनंदिनी के आंखों के तारे, प्रभु राम के प्राणों से भी प्यारे,
नाम तेरा निशदीन जपै जो कोई, राम हीं तारे राम रखवाले।
सीता मां ने सिंदूर लगाये,देख बजरंगी भये पुलकित मन हीं मन हर्षाए,
पुछा हाथ जोड़कर सुकुमारी से, ये क्या आपने सर में लगाये।
बोली स्नेह से रघुवर नंदिनी, इससे दीघार्यु हो प्रभु राम तिहारे,
सुन सीता की प्यारी बातें,अचरज हुए प्रभु राम दुलारे।
जो माता ने सर में थोड़ी सी लगाये,
मेरे प्राण प्रिय प्रभु की उम्र सदा बढ़ती हीं जाए।
सर से पांव तक स्वयं को रंग के बजरंगी हो गये सिंदुरी,
देख उनका निश्छल प्रेम आत्मविभोर हुये राम बलिहारी।
दिया आशिष संग राम सिया ने,जुग जुग जियो हे हनुमान,
मंगलवार को जो तुम्हें सिंदुर करें अर्पण, स्वयं प्रभु कष्ट हरेंगे बनकर करुणा निधान।