पल्लवित प्रेम
शतपत्र सरीखी गंध में पल्लवित प्रेम हो
मेघ से मंडित गगन में संचरित प्रेम हो
कुमिदनी कुञ्ज में भृंग मिलन स्नेह हो
सार के सजीवता में बस तुम्हारा नेह हो
पवित्र भरे प्रेम में अग्नि परीक्षा परिणाम हो
बस तुम्हारे छाँव में संस्कृति का घाम हो
आलिंगन मनोहर नव छवि सुकृति गान हो
सुकोमल प्रेम का तुमको भी थोड़ा भान हो
किन उपमानो से बताओ अब तुम्हें संदेश दूँ
उपनाम सब पुराने अरहर के पुष्पों से संदेश दूँ
हरे पीले झीट सी मनोरम कली सी संयुक्त हो
प्रकृति सान्निध्य में तुम सौन्दर्य सशक्ति मित्र हो