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2 May 2024 · 1 min read

पलाश के फूल

छोड़ जाता हूँ रोज
गुमनाम खत उनके नाम
धूप हवाओं के पास
इस उम्मीद में कि वो समझ ले
क्यों है तपिश आज धूप में,
हवायें रुक-रुककर क्यों बह रही है??
आये थे वे कभी बसन्त बनकर
मिला मैं, सरसो के फूल सा।
विरह में अब उनके
लगा झड़ने खेतो में,
उनकी यादो के साथ।
आज है लिख छोड़ा खत में
रोना मत लौट आया हूॅ मैं
तुझसे मिलने की खातिर
पतझड़ के मौसम में,
पलाश का फूल बनकर।

Language: Hindi
68 Views
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