पलायन
पलायन
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यूं ही मै गरल पीता रहा,
चारदीवारी में घुटता रहा।
नजर बंद हूँ इस घर में,
मौत का खबर सुनता रहा।
अपनें मुझसे दूर था,
काँधा दे न सका मजबूर था।
सुना कर गए इस जग को,
पलायन से ओ लोग बेघर था।
छीन ली उनकी साँसें,
उजड़ गई उनकी दुनिया।
क्या करें हालात से मजबूर थे,
छोड़ चली प्यारी मुनिया।
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डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभावना (छत्तीसगढ़)
मो. 8120587822