पलकों के दायरे में
पलकों के दायरे में गिरफ़्तार हो गए
लो हम भी आशिक़ी के गुनहगार हो गए
बदले मिज़ाज यूँ हैं समन्दर के आजकल
साहिल भी अब लहर के तलबगार हो गए
रहती थी ख़ुशगवार जिन्हें पा के ज़िन्दगी
सामान मौत के, वो समाचार हो गए
जिनके लिए खड़े थे जहाँ के ख़िलाफ़ हम
वो आज दुश्मनों के तरफ़दार हो गए
पत्थर कभी कहे जो, वही आज कह रहे
शायद ‘असीम’ दिल के क़लमकार हो गए
©️ शैलेन्द्र ‘असीम’