पलकों की दहलीज पर
पलकों की दहलीज पर, रहा जोहता बाट ।
खुले नही पर नैन के, उनके कभी कपाट ।
खोलेंगे इक रोज तो, कभी वे अपनी आंख,
मैने अपनी डाल दी , वहीं आज से खाट।।
रमेश शर्मा.
पलकों की दहलीज पर, रहा जोहता बाट ।
खुले नही पर नैन के, उनके कभी कपाट ।
खोलेंगे इक रोज तो, कभी वे अपनी आंख,
मैने अपनी डाल दी , वहीं आज से खाट।।
रमेश शर्मा.