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18 Mar 2020 · 1 min read

पलकें बिछा दी है

बरसात की बूँदों ने फिर आग लगा दी है
चाहत के च़रागों को मौसम ने हवा दी है

भीगी हुई अँखियों से बारिश के महीने में
टूटे हुए पत्तों ने शाखों को सदा दी है

वो सारे गिले-शिकवे दिल भूल गया क्योंकी
बौछार ने मिट्टी की दीवार गिरा दी है

भीगे हुए हाथों से छूकर के बदन मेरा
इस दिल के धड़कन की रफ्तार बढ़ा दी है

जज़्बात जगे दिल के मदमस्त हुए भँवरे
फूलों को हवाओं ने ये बात बता दी है

राहों में बिछे काँटे मौसम ने बुहारे जब
कदमों के तले हमने भी पलकें बिछा दी है

1 Like · 221 Views
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