पलकें बिछाए बैठें हैं
**** पलकें बिछाए बैठें हैं ****
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हम तो पलकें बिछाए बैठें हैं,
कब से सपनें सजाए बैठें हैं।
जी भर जो जो सनम करनी बातें,
अंबर बातें बनाए बैठें हैं।
आने से आपके रंगीं दिन – रातें,
सजदा नजरें झुकाए बैठें हैं।
कुदरत मेहर सदा ही बरसाए,
झोली भर कर दुआएं बैठें हैं।
मनसीरत यार पागल दीवाना,
सदका महफ़िल बुलाए बैठें हैं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)