पर वह इश्क, सहज निकम्मा निकला
दिल में है, बड़ा इश्क जमा निकला l
पर वह इश्क, सहज निकम्मा निकला ll
पहली ही झलक में, दिल में झलका l
इश्क जन्म से, सहज जालिम निकला ll
बाहरी जाल था, भीतरी जाल भी था l
न फंसने का, न कर सका फैसला l
पथरीला पर्वत, बड़ा चिकना था l
उसे फिसलना था, तो सहज फिसला ll
जरूरतें होत कम, पर अति में दम l
प्यास नहीं, विषय प्यास लिए निकला ll
दिल में है, बड़ा इश्क जमा निकला l
पर वह इश्क, सहज निकम्मा निकला ll
अरविन्द व्यास “प्यास”