“पर्व विजयादशमी का”
मन में उपजे भ्रांतियों के, मैं गढ़ को कैसे घहराऊं।
एक अंदर भी है अपने रावण, कैसे इसे हराऊं।।
विजया दशमी के पावन पर्व पर, बुराईयों का परित्याग करें।
अपने भीतर की काया को, मल-मल कर साफ करें।
जिस काल गति को भी बस में रखने का, मद रावण ने पाला था।
उसी काल ने विधि के खातिर,हलक से प्राण निकाला था।
धरती पताल जिसके चलने मात्र से थर थर थर थर कांप रहा था।
काल गति भी जिसके भय से थर-थर, थर-थर कांप रहा था
एक वक्त भी था ऐसा रावण का रणभूमि में सांसे नाप रहा था
वक्त का ऐसा प्रबंधन, उदाहरण कोई और नहीं प्रभंजन।
सब करनी औ फलदायक ब्रह्म, विष्णु औ महेश्वर का हो अभिनंदन।