पर्वोत्सव से सीख
महादेव प्रसाद प्रधानाध्यापक पद से सेवानिवृत्ति के बाद अपने गांव पिपरा में ही रहने लगे थे।वे मुजफ्फरपुर के जिला उच्च विद्यालय में प्रधानाध्यापक के पद पर कार्यरत थे। उन्हें दो बेटे मनोज और दीनेश थे तथा एक बेटी श्वेता थी।सबकी शादी हो चुकी थी। मनोज को एक बेटा शुभम था और एक बेटी सुहानी थी। दिनेश को एक बेटा शिवम था और एक बेटी शिवाणी थी।श्वेता को एक बेटा प्रियांशु था और एक बेटी प्रेमा थी।श्वेता के पति अभियंता थे और टाटा कंपनी , जमशेदपुर में नौकरी करते थे।श्वेता अपने बच्चों के साथ जमशेदपुर में रहती थी। बेटे मनोज और दिनेश अपने ही पंचायत में पंचायत शिक्षक थे। पोते पोतियां गांव के ही मध्य विद्यालय में पढ़ रहे थे।
महादेव प्रसाद अपनी पत्नी जगदंबा देवी और बेटों, बहुओं,पोते पोतियों,के साथ खुशी पूर्वक रह रहे थे।पोते पोतियों के धमा चौकड़ी से वे और उनकी पत्नी काफी प्रसन्न रहते थे।बुढे आदमी को बच्चे ही अच्छे दोस्त होते हैं।
सायं में सभी बच्चे अपने महादेव प्रसाद से कहानी सुनाने के लिए जिद्द करते थे। एक सायं जब महादेव प्रसाद पलंग पर लेटे हुए थे। पत्नी जगदंबा देवी पैर दबा रही थी। सभी बच्चे उनके नजदीक आ गये और कहानी सुनाने के लिए जिद्द करने लगे। महादेव प्रसाद बोले-अभी अक्टूबर का महीना चल रहा है।इसी महीने में दस दिन बाद दूर्गा पूजा है। मूर्ति बन रही है। दूर्गा पूजा के बीस दिन बाद दीपावली और दीपावली के छह दिन बाद छठ पूजा मनाया जायेगा।
शिवम ने कहा -दादा जी। हमलोग दूर्गा पूजा क्यो करते हैं?
महादेव प्रसाद ने कहा-एक समय में पृथ्वी पर महिषासुर नाम का एक राक्षस बड़ा आतंक मचा रखा था।वह मानव पर अत्याचार करता था और उसे मार देता था।तब देवताओं ने एक नारी को अपनी शक्ति देकर महिषासुर को मारने के लिए कहा।दूर्गा और महिषासुर में युद्ध हुआ और महिषासुर मारा गया। और दशमी के रोज मारा गया। हम उस दिन को विजय दशमी के रूप में मनाते हैं और दस दिन देवी दूर्गा की पूजा करते हैं। हमलोग दूर्गा पूजा का मेला देखने चलेंगे।
शिवाणी बोली- दादा जी। हमलोग दीपावली क्यो मनाते हैं?
महादेव प्रसाद बोले- रामायण के कथानुसार भगवान राम ने राक्षस राज रावण को विजयदशमी को ही बध किये थे। हां। भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण के साथ छह दिन बाद अयोध्या पहुंचे थे। लोग उस दिन खुशी में दीपावली मनाये थे। हमलोग इस दिन को रात में दीपावली मनाते हैं। हमलोग इस दिन धन की देवी लक्ष्मी की भी पूजा करते हैं।
शुभम बोला-दादा जी। हमलोग छठ क्यो मनाते हैं?
महादेव प्रसाद बोले-छठ में हमलोग सूर्य की पूजा करते हैं। सूर्य उर्जा का बहुत बड़ा श्रोत है। यह एक प्रकृति पूजा है।हमलोग नदी या तालाब के किनारे भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं। पहले दिन को सायं डूबते हुए सूर्य को तथा दूसरे दिन सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
सभी बच्चे को अब नींद भी आ रही थी। देखते हुए महादेव प्रसाद ने कहा-अपने-अपने कमरे में चले जाओ। हमलोग पहले दूर्गा पूजा मेला देखने चलेंगे।
आज नवमी हैं। सभी बच्चे दादा-दादी के साथ सुरसर दूर्गा पूजा मेला देखने गए। सबसे पहले माता दुर्गा के दर्शन करने गए। माता दुर्गा शेर पर सवार थीं। माता दुर्गा का त्रीशूल महिषासुर के छाती में घुसा था।छाती से खून बह रहा था।शेर महिषासुर के हाथ को दबोचे हुए था।अगल बगल में धन की देवी लक्ष्मी और विद्या की देवी सरस्वती की मूर्ति भी थी। सभी बच्चे विस्मित और ख़ुश दिखाई पड़ रहे थे।
महादेव प्रसाद बोले-चलो मेला देखने चलते हैं। बच्चें दादा दादी के दोनों हाथ पकड़े चल रहे थे।दूकाने कतार से सजी हुई थी। सबसे पहले खिलौने की दूकाने। सभी बच्चे ने खिलौने खरीदे। इसके बाद मिठाई के दूकाने। सभी बच्चे ने मिठाईयां खाते। बीच-बीच में बैलून वाले,बांसूरी बाले भी मिलें। सभी बच्चे बैलून और बांसूरी भी खरीदें। सबसे अंत में झूला लगा था। झूला में बैठने के लिए हाथी, घोड़े, शेर,हवाई जहाज़ लकड़ी के बने थे। कोई हाथी,शेर, घोड़े पर तो कोई हवाई जहाज पर बैठा। झूला वाले ने एक हाथी को पकड़ कर दो बार गोल गोल झूला को घुमा कर अलग हो गया। झूला घूमने लगा। पांच चक्कर के बाद झूला स्थिर हो गया। सभी बच्चे झूला से उतर गया।
झुला वाला कम्पाउंड में कुछ औरतें एक दूसरे से लिपट कर रो रही थी। सुहानी बोली-दादा जी मेले में ये क्यो रो रही है?दादा जी बोले-ये अपनी संबंधियों से मिलकर रो रही है। ये मां-बेटी है जो मेला में मिल गई है। इसलिए खुशी में रो रही है। फिर विछुडन होने पर भी रोती है। ये पर्व मिलने जुलने का भी पर्व है।
सभी आगे बढ़ते हैं तो मेला कार्यलय से घोषणा की जा रही है। एक बच्चा जो पांच वर्ष का है, अपने स्वजन से बिछड़ गया है।अपना नाम गौरव, पिता का नाम सुरेश साह और गांव बराही बताता है। उसके स्वजनों से अनुरोध है कि मेला कार्यालय में आकर अपने बच्चा को ले जाये।बच्चा का पिता घोषणा सुनते ही कार्यालय आकर अपने बेटा को अपने साथ ले गया।
सभी बच्चे दादा-दादी के साथ घर लौट गए।
कल दशमी के दिन फिर सभी बच्चे दादा-दादी के साथ सुरसर पहूंचे। ये लोग थाना के पास ही थे। लेकिन दूर्गा की मूर्ति विसर्जन हेतु ट्रैक्टर पर जुलूस के साथ आगे बढ़ रहा था।काला मंदिर के पास पहुंच गया था।कि असामाजिक तत्व ने दूर्गा की मूर्ति पर पत्थर फेंक दिया। ऐसा होते ही पुलिस के रहते भी लोग बगल के मुस्लिम मुहल्ले में लूटपाट,मार काट करने लगे। हिन्दू और मुस्लिम आपस में भिड़ गए। घड़ो में आग लगा दिया।दोनों तरफ से कितने लोग मारे गए। लोग कहते थे कि एक सौ आदमी मारे गए। कुछ दो सौ कहते। अफवाह का बाजार गर्म था। कुछ लोग टीवी, रेडियो आ अन्य समान लूट कर भाग गए। अग्निशमन बाहन से आग पर काबू पाया गया। पुलिस के अकथ प्रयास से दंगा पर काबू पाया जा सका। धारा १०७लागू कर दिया गया। बहुत लोग जेल गए। बच्चे दादा-दादी के साथ डरते डरते घर लौट गए।
न्यायाधीश ने कहा- जमानत इस शर्त पर दिया जायेगा कि मूस्लीम को हिन्दू और हिन्दू को मुस्लिम जमानत दार होगा । शांति समिति की बैठक हुई।मुस्लीम और हिन्दूओं ने एक दूसरे वर्ग के लोगों के जमानतदार बने और सभी लोगों को जमानत मिल गई।
बीस दिन के बाद दीपावली आ गई।शाम सभी बच्चे दादा-दादी संग दीपों में सरसों तेल डालकर कतार से पक्कै मकान के छज्जे पर सजा कर, दीपों को जला दिया। महादेव प्रसाद ने कहा-साबधानी से पटाखे छोड़ो। बच्चों ने छुरछुरी,ऐटम बम, कृष्ण चक्र और जेट बम छोडै।सारा गांव धूंआ धूंआ दिखने लगा। एक दूर्गंध से वातावरण भर गया।
शिवम ने पूछा-दादा जी ऐसा क्यो हो रहा है। दादा जी ने कहा-देखो खूशी में तो हम पटाखे खूब फोड़ते हैं। लेकिन इसके धूंआ में हानिकारक तत्व है जो प्रदूषण फैला रहा है।
शिवम ने कहा-दादाजी । अगले साल से दीपावली में हमलोग पटाखे नहीं छोड़ेंगे। हमें वायु प्रदूषण से बचना होगा।
सभी बच्चों ने कहा-हम पटाखे नहीं छोड़ेंगे। प्रदूषण नहीं फैलायेंगे।
दीपावली के छह दिन के बाद छठ आ गया। सभी बच्चे गर्म कपड़े पहने हुए थे। गांव के पोखर पर घाट महादेव प्रसाद के दोनों बेटे ने तैयार कर रखा था।
घर में छठ का डाला तैयार हो चुका था। महादेव प्रसाद के बड़ा बेटा मनोज डाला वाला ढकिया सिर पर रख के घाट पर जा रहा था। उसके पीछे जगदंबा देवी अपनी बहूओं के साथ चल रही थी। दादा-दादी के साथ छोटा बेटा दीनेश और बच्चें चल रहे थे। सभी लोग घाट पर पहुंचे। जगदंबा देवी ने डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया। बच्चों ने पटाखे नहीं फोड़े।
दूसरे दिन सुबह बच्चें की दादी ने उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया। जगदंबा देवी ने गरीबों में भी प्रसाद बांटी। बच्चों को भी प्रसाद के रूप में ठेकुआ,भूसंवा और केले दिया।बच्चे भी खुश थे।
लेकिन लोग जाते सजाये गये केलो के थम्भो और अशोक के पत्ते को तालाब में डाल रहे थे।
महादेव प्रसाद ने ऐसा करने से लोगो को रोका। शिवम ने कहा- दादा जी क्यो रोक रहें हैं।दादा जी ने कहा-केला के थम्भ और अशोक के पत्ते तालाब के पानी में सड़कर पानी को प्रदूषित करेंगे।तो लोग स्नान कैसे करेंगे। लोग महादेव प्रसाद की बात मान गये। उन्होंने कम्पोस्ट खाद बनाने की बिधि भी बताया। लोगों
ने तालाब में जो डाल दिया था उसको भी निकाल कर बाहर एक गढ्ढे में डाल कर ढंक दिया। और कहा कि सड़ जाने पर खेतों में डाल देंगे।यह कम्पोस्ट खाद का काम करेगा। और खेतों की उर्वरा शक्ति बढ जायेगी।
आज सायं फिर महादेव प्रसाद पलंग पर लेटे हुए थे। उनकी पत्नी जगदंबा देवी पैर दबा रही थी। बच्चें उनको घेरे बैठे हुए थे। महादेव प्रसाद ने कहा-तुमलोग इस अक्टूबर-नवम्बर महीनों में दूर्गा पूजा, दीपावली पर्व और छठ पर्व मनाया।यह पर्वोत्सव हमें मेल जोल से रहने और वातावरण को प्रदूषणमुक्त रहने की सीख देता है।
स्वरचित@सर्वाधिकार रचनाकाराधीन।
रामानंद मंडल, सीतामढ़ी।
साहित्यपिडिया कहानी प्रतियोगिता हेतु।