*पर्वत से दृढ़ तुम पिता, वंदन है शत बार (कुंडलिया)*
पर्वत से दृढ़ तुम पिता, वंदन है शत बार (कुंडलिया)
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सागर-से गंभीर तुम , नभ जैसा विस्तार
पर्वत-से दृढ़ तुम पिता ,वंदन है शत बार
वंदन है शत बार , सदा देते ही पाया
घर को शुभ आकार ,मिली तुमसे ही काया
कहते रवि कविराय ,स्वयं सिमटे गागर-से
चाह रहे संतान , बने बढ़कर सागर से
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451