पर्वत के जैसी हो गई है पीर आदमी की
पर्वत के जैसी हो गई है पीर आदमी की
कैसी लिखी भगवान ने तकदीर आदमी की ?
रातों की नींद खोई दिन का सुकूं गंवाया,
सारी उम्र कमाया फिर भी ना चैन पाया ,
दुनिया में रह गई सब जागीर आदमी की ।
कैसी लिखी भगवान ने तकदीर आदमी की ?
चेहरे बड़े है भोले लगते बड़े करीबी ,
दिल में जलन है भारी , मुस्कान है फरेबी
पहचानना है मुश्किल तस्वीर आदमी की ।
पर्वत के जैसी हो गई है पीर आदमी की ।
जीवन में ऐसे लोग मिलते नहीं किसी को ,
जो काटते गिरेंबा , दिखते नहीं किसी को ,
अब जीभ हो गई है शमशीर आदमी की ।
पहचानना है मुश्किल तस्वीर आदमी की ।
करते हैं बेईमानी घर घर में हैं लुटेरे ,
कुछ तेरे मुंह पर तेरे और मेरे मुंह पर मेरे ,
बातों का खेल है सब तरकीब आदमी की ।
पहचानना है मुश्किल तस्वीर आदमी की ।
ये इश्क और मोहब्बत छाया जुनून कैसा ?
न कोई लैला जैसी , ना कोई मजनू जैसा ,
घर घर में अब मिलेंगी हीर आदमी की ।
पर्वत के जैसी हो गई है पीर आदमी की ।
मंजू सागर