*पर्वतों की सैर*
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चल पर्वतों की सैर करें।
ठंडी बर्फ में जाकर ठरें।
इस आग उगलते शहर में,
हम क्यों घुट घुटकर मरें।
चल शुद्ध हवा में हम झूमें।
बल खातीं सड़कों पर घूमें।
उड़ते हुए बादल पकड़ें हम,
सपने संजोए बादलों के परे।
चल पेड़ों से कुछ बातें करें।
स्नेह की उन पे सौगातें धरें।
खिलते हुए फूलों को निहारें,
नैनों के कटोरों में लम्हे भरें।
चल बर्फ के गोले फैंकें हम।
मस्ती में दोनों चहकें हम।
गीत पंछियों के सुनें सुरीले,
बोझ दिल के कुछ कम करें।
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सुधीर कुमार
सरहिंद फतेहगढ़ साहिब पंजाब।