पर्यावरण
प्रकृति वसुधा परिवेश पर्यावरण
पीड़ा में रहें हैं कबसे पुकार।
अब तो अति हो गई मानव,
अपना व्यवहार सुधार।
मुक्तक
अश्रुपात अभियोग शोक संग प्रकृति करे विलाप।
क्यूं हुआ खल अधम दुर्जन मनु तुझे ज़रा नहीं संताप।
हरियाली वन विटप मंजरी रक्त स्त्राव से भीगे।
पेड़ लगाकर बचा पर्यावरण क्यों बना तू अभिशाप
ताड़ विटप वन उजाड़,हे मानव तू कर रहा जिसका शोषण।
वही भू अचला मां युगों से कर रही तेरा पोषण।
बिन हरियाली और संग प्रदूषण जीवन तेरा बोझ है।
आरोग्य जीवन पाना चाहता है तो तू कर पर्यावरण का संरक्षण।
तू बनादे वातावरण शुद्ध और हर प्राणी को आरोग्य।
ले प्रण तू वसुधा को प्रदुषण मुक्त कर बनायेगा रहने योग्य।
निस दिन तेरे बढ़ते प्रदूषण से सुलग रही है मां धरती।
पर्यावरण भौतिक वातावरण का द्योतक चमकेगा तेरा भाग्य।
नीलम शर्मा