” पर्यावरण”
उठो, जागो
इस धरा को प्रदूषण से मुक्त करायें हम
वक्त है अभी भी, जागरूकता का संदेश फैलाये हम
आधुनिकता की परिभाषा में बंजर हुई धरती को
फिर से लहलहाये हम , नहीं काटे हम वृक्षों को, वृक्षारोपण बढ़ायें हम।
मत करो आधुनीकरण प्रकृति का, नीर खाम हो जायेगा
हे मूर्ख मानव तू फिर, प्यासा ही मर जायेगा,
माटी के बर्तन का प्रयोग, पूर्वजों ने हमें सिखाया है
न जाने ये ‘विष’ प्लास्टिक का इस ग्रह पर कहां से आया
त्यागो इसको तत्काल ही, ये सर्व नाश कर जायेगा
पछताते रह जायेंगे हम और हाथ कुछ नही आयेगा
डॉ. कामिनी खुराना (एम.एस., ऑब्स एंड गायनी)