पर्यावरण संरक्षण
जन-जन की हो कामना,स्वच्छ रहे परिवेश।
रोगमुक्त निर्मल रहे, नगर, गाँव औ’ देश।
नगर ,गाँव औ’ देश, रहित हो कूड़े- कर्कट।
अमलिन बस्ती बसे,अमल हो घट-घट मरघट।
मानव आँखों सजे,सुभग सुखदायक अंजन।
पुष्पित-पर्यावरण और सुरभित हो जन-जन!१।
दोहन कर मानव सदा, देता दुहरे दाम।
अंत समय जब पास हो,भजता फिर वो राम।
भजता फिर वो राम,विकट जब बाधा आती।
रात्रि ही अनायास, सुनाई पड़े पराती।
अतः समय से पूर्व,कीजिए सम्यक चिंतन।
साधन का पर्याप्त,हो चुका अबतक दोहन।२।
मिट्टी को सु-निचोड़कर,गाड़ लिए सब अर्क।
भावी चिंता छोड़िए,किसको पड़ता फ़र्क।
किसको पड़ता फ़र्क,उपजता जब तक सोना।
अपनी तो जी लिए,होय जो कुछ अब होना!
पीकर सारे अर्क ,छोड़ दी थोड़ी सीठी।
आने वाली पुश्त,पूर्वजों की लो मिट्टी।।३।
मानव प्राणी हैं सभी,स्वाभाविक अभिजात।
निरकुंश होकर यद्यपि , करते ये उत्पात।
करते ये उत्पात,सिंधु,सर,तरु अरु वन पर।
पर्वत पठार संग ,मूक निर्बल निर्जन पर।
‘अतिशय’ की कामना, बना देती है दानव।
पर संयम से सदा ,रहेगा मानव ‘मानव’।४।
©सत्यम प्रकाश ‘ऋतुपर्ण’