पर्यावरण है तो हम हैं।
आप सभी बुद्धिजीवी वर्ग के इस धरा पर उपस्थित उच्च स्तरीय स्तनपायी जीवधारियों को मेरी ओर से पर्यावरण दिवस की अनेक अनेक अशेष शुभकामनाएं सादर सम्प्रेषित है।विलंब के लिए क्षमा।आशा है कि आप सभी इस पर्यावरण के अभिन्न अंग होने के नाते मेरा ये अभिवादन अवश्य स्वीकार करेंगे।हृदय से आपका आभार व्यक्त करता हूँ कि जो आप मेरी बात सुन रहे हैं।आइए मैं आपको आगे की ओर लेकर चलता हूँ और आपके विचार बदलता हूँ।
पर्यावरण संकट में है पर ये कोई नहीं समझता कि पर्यावरण नहीं स्वयं हम संकट में हैं।
एक कहावत है कि पैर में कुल्हाड़ी मारना लेकिन हम जिस गति से पेड़ पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं यकीन मानिए हम पैर पर कुल्हाड़ी नहीं बल्कि कुल्हाड़ी पर पैर मार रहे हैं।
कहीं ऐसा ना हो कि पेड़ काल्पनिक पात्र हो जाए और हम धरती पर रहने के लिए अपात्र हो जायें।
समस्या अत्यंत जटिल और गंभीर है
आपका ध्यान आकर्षित हो।
केवल जागरूकता ही हमारी सुरक्षा कर सकती है तो देर किस बात की।
एक कदम नहीं एकदम हर कदम पर्यावरण को समर्पित करें।अर्पित करें।
अपनी सुरक्षा अपने हाथ
कहीं हमें पेड़ से हाथ ना धोना पड़े।
एक संकल्प पेड़ लगाने का
एक विकल्प पर्यावरण बचाने का
एक कायाकल्प नया कर दिखाने का
एक अल्प किन्तु सार्थक कदम बढ़ाने का
पेड़ लगाओ और लगवाओ
इस धरा पर खुशहाली लाओ
जल की करो रक्षा और सही उपयोग
जल बिन जीवन है नहीं यही कहता है योग
अब पेड़ लगाना ही पड़ेगा हमें आगे आना ही पड़ेगा
अगर स्वयं को बचाना है तो हमें वृक्षों को बचाना ही पड़ेगा
आइए आपके समक्ष मेरी एक कविता प्रस्तुत है आपको प्रेरणा मिले और पर्यावरण का संरक्षण हो ऐसी मंगल कामना के साथ जो अमंगल का क्षय करे।
आइए एक पेड़ लगायें
पहले पर्यावरण को नहीं मन को मजबूत बनायें
केवल पेड़ लगायें नहीं बल्कि उसे सुरक्षा के घेरे से बचायें
जब तक वह सक्षम ना हो उसे उपजायें
इस धरा को अपने हाथों से हरियाली पहनायें
वर्षा को आमंत्रित कर इन्हें नया जीवन दिलवायें
पेडों में जान है अगर आप ये जान जायें
तो फिर उन्हें काटने वाले हाथों को, पाप है ये बतलायें
और बचे वृक्षों को हम जीवित रख पायें
वृक्ष काटना अपराध है कि श्रेणी में लायें
अपराध की श्रेणी में नहीं आजीवन कारावास करायें
वृक्ष से हम मात्र अपना स्वार्थ ना निभायें
वो जीवन के लिए प्राणवायु है यह बात सभी को समझायें
पेड़ पर आघात और पेड़ लगाने की बात इस मतभेद को मिटायें
पर्यावरण के संतुलन में अपना अमूल्य योगदान दिखलायें
अपनी जागरूकता से अपना स्वर्णिम भविष्य स्वयं सजायें
अपना वचन सार्थक करें प्रकृति से प्रेम का पाठ पढ़ायें
सभी से कहें पेड़ लगाओ,पेड़ लगाओ नहीं पेड़ बढ़ायें
ये अमर सूत्र प्रत्येक दिन अवश्य दोहरायें
धरा मुस्कुराये तो इस धरा के प्रत्येक मानव के चहरे मुस्कुरायें
जो सच है वही खोल रहा हूँ
आंखें खोलिए श्रीमान-जी हाँ आदित्य बोल रहा हूँ
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन की अलख
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर,छ.ग.