पर्यावरण परिवर्तन
पर्यावरण परिवर्तन
असर दिखने लगा है मौसम-ए- परिवर्तन का
सूखने लगा है पानी नदियों और झरनों का
कहानी कहते है परिंदे अब भी उस शहर की
जो कभी था हरा – भरा अब उजड़ने लगा ।।
किस्सा अभी भी चल रहा पेड़ों के संघार का
बसेरा उजड़ रहा है पक्षियों के आवास का
उड़ रही है धूल बरसात मे खेत-खलिहान की
मरुभूमि धरती प्रकोप है मौसम -ए- मिजाज का ।।
नभ जल थल सब प्रदूषित प्रकोप है मानव का
भूस्खलन भूकम्प परिणाम है मानव खनन का
शुद्ध नदी नीर नहीं मानव ने वायु भी अशुद्ध की
अंधाधुंध प्रयोग हो रहा इंधन जीवाष्म का ।।
हिमगिरि पिघल रही कारण है ताप का
धरती समा रही अब किनारा समुद्र का
सभ्यता और संस्कृति मिट रही समाज की
बदल जाएगा मानचित्र भी विश्व के आकार का।।
अब समय आ गया है स्वच्छता अभियान का
स्वच्छ हो देश अपना बात है अभिमान का
गांव गली शहर नली स्वच्छता की बात चली
स्वस्थ होंगे सभी जब हो बोल बाला स्वच्छता का ।।
“”””””””””””””” सत्येंद्र प्रसाद साह (सत्येंद्र बिहारी)””””””””””””””””