*पर्यावरण दिवस * *
जंगल के दरख्तों को उतार कर आँगन में,
हमने एक दिन का मेला सजाया है।
‘पर्यावरण दिवस’ के नाम पर,
बाज़ार ने फिर से नाटक रचाया है।
धरती माँ की छीन हरी चादर के आँचल को ,
आलीशान शामियाने और टेंट लगवाये है ।
मेहमानों की चहल कदमी को दिया रेड कारपेट वेलकम ,
काट के पेड़ सामने के अहाते में पार्किंग शेड बनाये है ||
गला तरकरने के लिए प्लास्टिक बोतल बंद ठंडा पानी ,
दीवारों पर’ पानी बचाओ’ के नारे चिपकाये हैं |
आसमान से उगलती तेज गर्मी खातिर ,
हाल में एयर कंडीशनर भी लगाए हैं ।
धुआं उगलते कारखाने की चिमनियों को,
आज एक दिन के लिए बंद कर दिया है ।
प्रदुषण फैलाने का ठेका आज ,
‘पर्यावरण विद’ नेता ने अपने जिम्मे लिया है ।
भाषण होंगे , संकल्प लिखेंगे ,बड़े बड़े आयोग बनेंगे,
पर्यावरण की चिंता में आज नेताओ के आंसू बहेंगे |
दूर सूखे कुँए के किनारे पे खड़े सूखे दरख्त,
अपनी बदहाली अपने आंसुओं से कहेंगे |
ओ प्रकृति! तेरी करुणा के आगे नतमस्तक हैं हम,
क्यों अपनी ज़िम्मेदारी से मुख मोड़ चले।
पाल पोश कर बड़ा किया तूने ,
तेरे ही आँचल में विष छोड़ चले ।
रचनाकार-डॉ मुकेश ‘असीमित ‘