*पर्यावरण और मानव*
5 जून विश्व पर्यावरण दिवस पर मनहरण घनाक्षरी रचना
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★ पर्यावरण और मानव★
धरा का श्रृंगार देता, चारो ओर पाया जाता,
इसकी आगोश में ही, दुनिया ये रहती।
धूप छाँव जल नमीं, वायु वृक्ष और जमीं,
जीव सहभागिता को, पर्यावरन कहती।
पर देखो मूढ़ बुद्धि, नही रहीं नर सुधि,
काट दिए वृक्ष देखो, धरा लगे जलती।
कहीं सूखा तूफ़ां कहीं, प्रकृति बीमार रही,
मही पर मानवता, बाढ़ में है बहती।
वायु बेच देता नर, सांसों की कमीं अगर,
लाशों से भी बेच देता, भाग ठीक रहती।
किला खड़ा किया मानो,जंगलों को काटकर,
खुशहाली देखो अब, भू कम्पनों में ढहती।
भू हो रही उदास, वन दहके पलाश,
जले नर संग तरु, जब चिता जलती।
बरस जहर रहा, प्रकृति कहर रहा,
खोट कारनामों से, जल विष बहती।
वृक्ष अपने पास हों, तो दस पुत्र साथ हों,
गिरे तरु एक धरा, बड़ा दर्द सहती।
ऐसे करो नित काम, स्वस्थ बने तेरा धाम,
स्वच्छ वात्तरु जल से, धरा खुश रहती।
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◆अशोक शर्मा, लक्ष्मीगंज,कुशीनगर,उ.प्र.◆
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