!! पर्यावरणीय पहल !!
जले जंगल गले ग्लेशियर
हिम के पर्वत पिघले।
निर्जल नदियां तपते ताल
सिंधु सागर भी हैं उबले।।
कही आंधी-तूफान तो
कहीं फट रहें हैं बादल।
नदी-नाले बन रही सड़कें
शहर बन रहें हैं दलदल।।
कही फट रही धरती तो
कही दरक रहे हैं पहाड़।
रेगिस्तान हो रहे जलमग्न
खेत-खलिहान होते उजाड़।।
डूब जाएंगे सब टापू-द्वीप
समा जाएंगे सब तटीय शहर।
होंगे फल-फूल फसल चौपट
जब पड़े भीषण गर्मी का कहर।।
कारण? कारण पूछे मनुवा
नही निवारण ! कारण ढूंढे मनुवा।
खुद ही सारी दुनिया को
दीवार पर दे रहा चुनवा।।
ये भी कहता ग्लोबल वार्मिंग
वो भी कहता ग्लोबल वार्मिंग।
पर मैं तो कह रहा हूं
ये नहीं अभी ‘ग्लोबल वार्मिंग’।।
अभी तक तो ये है
बस एक ‘ग्लोबल वार्निंग’।
आने वाले दिनों में असली
खतरा तो है ‘ग्लोबल बर्निंग’।।
तेरा किया कराया ये
जो है ‘ग्रीन हाउस इफैक्ट’।
असली में तो ये है
तेरा ग्रीड हाउस डिफैक्ट।।
तूने लालच में अपने
रौंद डाली है सारी प्रकृति।
अंधाधुन शोषण-प्रदूषण से
पैदा कर दी विकट विकृति।।
कुंभीपाक बना रहा है
इस प्यारी-न्यारी धरती को।
रोज-रोज मार रहा है
तिल-तिल कर मरती को।।
दोष जलवायु को ही देकर
कहता इसे जलवायु परिवर्तन।
दिखता नहीं है क्या हमको
होता ये पर्यावरण पतन।।
झेल रहे अंधाधुंध दोहन
प्राणी प्रकृति और पर्यावरण।
हम हो निर्लज्ज स्वार्थ में
कर रहे धरती का चीरहरण।।
ये पेड़-पौधे पशु-पक्षी
सब जीव-जंतु प्राणी जगत।
हे मानव ! तेरी तृष्णा को
ये सभी निसहाय रहे भुगत।।
क्यों तूने बंद रखी ऑखें
कैसा सुरसा सा मुंह है खोला।
अपनी लालची कारनामों पर
क्यों कभी नहीं है बोला।।
तू दूर ग्रहों में जीवन ढूंढ़े
यहां विनाश की बिसात बिठाता।
अपनी छोटी सोच से तू
क्यों अभी तक ऊपर न उठता।।
हरे-भरे जंगल काट-काट
खड़े करे कंक्रीट के जंगल।
पालिथीन प्लास्टिक से पाटे
नदी नाले तालाब दलदल।।
प्रदूषित मिट्टी हवा-पानी
प्रदूषित सारा मंजर किया।
बम-बारुद विषैले रसायनों ने
हरित वसुंधरा को बंजर किया।।
अब तो जागरूक हो प्रकृति
पर्यावरण की सुरक्षा में।
एक पेड़ तो लगा ही लो
कम से कम अपनी रक्षा में।।
मिले संभाली-सॅवारी धरती
भावी पीढ़ी होगी प्रतिक्षा में।
सुंदर धरा उनका अधिकार
क्यों मांगेंगे इसे भिक्षा में।।
~०~